S C में नाबालिग के साथ शादी कर चुके रेप के दोषी की सज़ा माफ
क़ानून की नज़र में अपराध,पर लड़की की नज़र में नहीं: S C
कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले में की गई विवादित टिप्पणियों का मामला

दिल्ली :कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले में की गई विवादित टिप्पणियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट पंहुचा केस बना ओका का आखिरी फैसला। जस्टिस में अपने कार्यकाल के आख़िरी दिन जस्टिस ए एस ओका की बेंच ने नाबालिग लड़की के साथ रेप के दोषी की सज़ा माफ करने का फैसला सुनाया। कलकत्ता हाई कोर्ट की फैसले में की गई विवादित टिप्पणियों के चलते एक यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस केस में नाबालिग लड़की के साथ रेप के दोषी 25 साल के व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि लड़कियों को अपनी सेक्स की इच्छा नियंत्रण में रखनी चाहिए। हाई कोर्ट ने युवा लड़के और लड़कियों के लिए कई दिशानिर्देश भी तय किया।
20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए निचली अदालत के दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा। निचली अदालत ने पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 6 और आईपीसी 376(3) और 376(2) के तहत दोषी माना था और 20 साल की सज़ा दी थी।हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकार रखा पर सज़ा कितनी दी जाए, इस पहलू पर फैसला पेंडिंग रखा था। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को कमेटी बनाने को कहा था।
कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने आज दोषी को सज़ा न देने का फैसला लिया। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने आर्टिकल 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आरोपी को सज़ा न देने का फैसला लिया। कोर्ट ने कहा कि क़ानून की नज़र में भले ही यह अपराध हो लेकिन पीड़ित लड़की ने इसे कभी अपराध की तरह देखा नहीं। कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि पीड़ित लड़की को सामाजिक दबाव और कानूनी प्रकिया के चलते बहुत मुश्किल झेलनी पड़ी है। लड़की अब बालिग हो चुकी है और आरोपी के साथ शादी भी कर चुकी है और अपनी ज़िंदगी मे खुश है।
कोर्ट ने कहा कि इस केस के तथ्य आँख खोल देने वाले है। यह हमारे क़ानूनी सिस्टम की कमियों को दर्शाता है। इस केस में समाज ने लड़की को ‘जज’ किया।उसके घरवालों ने उसे अकेला छोड़ दिया।उसे अपने प्रेमी को बेगुनाह साबित करने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि लड़की आरोपी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी है।उसके साथ शादी कर चुकी है और उनका एक बच्चा भी है। इन सब परिस्थितियों के मद्देनजर हम आर्टिकल 142 के तहत सज़ा न देने का फैसला ले रहे है।
