आजादी के इतने वर्षों बाद भी आज भी चाय बागान में रहने वाले श्रमिक स्वयं को दोयम दर्जे के बंधुआ मजदूर के रूप में मानते हैं। चाय श्रमिकों का कहना है कि उन्हें आज तक न्यूनतम मजदूरी तक नहीं मिल पाई जबकि वोट बैंक के लिए अब तक की बंगाल की राजनीतिक पार्टियां उनका इस्तेमाल करती रही है। यही कारण है कि पहले कम्युनिस्ट पार्टी की ट्रेड यूनियन सीटू के बैनर तले यह श्रमिक कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे लेकिन सत्ता बदलने के साथ कांग्रेस के इंटक, तृणमूल कांग्रेस के आईएनटीटीयूसी और अब भारतीय चाय मजदूर संघ के साथ कदम से कदम मिलाने को तैयार है। ।चाय श्रमिकों के साथ सोशल इंजीनियरिंग में भी भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर बंगाल में महारत हासिल कर ली है। प्रधानमंत्री चाय श्रमिकों और हिल्स की चिर परिचित समस्या को लेकर क्या बोलते हैं इसकी और सब की नजर लगी रहेगी। यही कारण है कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा इनको अपने पाले में खींचने का हरसंभव प्रयास कर रही हैं।
दार्जिलिंग में 70 प्रतिशत से अधिक चाय श्रमिक महिलाएं
आईआईएम कलकत्ता के तरित कुमार दत्ता ने दार्जिलिंग के चाय उत्पादन पर एक शोध पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि दार्जिलिंग में 87 चाय बागान हैं, जो 17,542 हेक्टेयर जमीन पर फैले हैं। इनमें सबसे ऊंचा चाय बागान करीब 2000 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। हर चाय बागान में औसतन 700 श्रमिक काम करते हैं। दार्जिलिंग में चाय श्रमिकों में महिलाओं की भागेदारी पुरुषों से काफी अधिक है। शोध पत्र के आंकड़ों की मानें तो दार्जिलिंग के चाय बागानों में 70 प्रतिशत श्रमिक महिलाएं हैं।
दार्जिलिंग में चाय उत्पादन भारत के दूसरे इलाकों के मुकाबले अधिक महंगा है। लेकिन, उत्पादन दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। औसतन भारत में हर हेक्टेयर में 1,800 किलो चाय का उत्पादन होता है, लेकिन दार्जिलिंग में ये आंकड़ा केवल 400-450 किलो है। अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण दार्जिलिंग में चाय की पत्तियों को पूरी तरह से मनुष्य द्वारा निकाला जाता है।
पिछले कुछ दशकों में इलाके की आबादी तेज़ी से बढ़ी है। 2010 आते आते दार्जिलिंग में चाय श्रमिकों की संख्या 61,000 पार कर गयी। आज यह आंकड़ा करीब तीन लाख बताया जाता है।
चाय की शैंपेन के नाम से मशहूर दार्जिलिंग में दुनिया के सबसे लुभावने चाय बागान हैं, लेकिन इसकी खूबसूरती के पीछे चाय बागान उद्योग की कड़वी हकीकत छिपी है। यहां महिलाओं को कम कमाई और घरेलू जिम्मेदारियों के दोहरे बोझ के कारण काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है। कई लोग कम वेतन वाली शारीरिक श्रम वाली नौकरियों में लंबे समय तक काम करते हैं, लेकिन घरेलू और देखभाल की अधिकांश जिम्मेदारियां भी निभाते हैं। इससे उनकी कमाई की क्षमता और समग्र वित्तीय स्थिरता में सुधार करने के लिए उनके पास सीमित समय और संसाधन बच जाते हैं। पर्याप्त सहायता प्रणालियों की कमी, जैसे कि किफायती बाल देखभाल और लचीली कार्य व्यवस्था, इस बोझ को बढ़ाती है और कार्यबल में प्रगति करने की उनकी क्षमता को और सीमित कर देती है। चाय बागानों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संतोषजनक पारिश्रमिक और संसाधनों तक पहुंच का समर्थन करने वाली नीतियों को लागू करके इस दोहरे बोझ को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।