क्या लिखा अपने अंतिम पोस्ट में इस जेलर ने ?

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
मुंबई :अंग्रेजो के जमाने का जेलर चला गया । जब समूचा देश धूमधाम से दीपावली मना रहा था । यह जेलर अस्पताल में कैद था । अंतत वह हंसते हंसते इस दुनिया को चुपचाप छोड़कर चला गया । दीपावली की धूमधाम की वजह से जेलर की मौत दबकर रह गई ।
मुंबई की हलचल उस सुबह कुछ थम सी गई थी। 20 अक्टूबर वह तारीख थी जब भारतीय सिनेमा की हँसी थोड़ी फीकी पड़ गई। समाचार एजेंसियों ने खबर दी कि “गोवर्धन असरानी नहीं रहे।” कुछ पलों के लिए हर सिनेप्रेमी ठिठक गया। जिस चेहरे की मुस्कान ने दशकों तक लाखों लोगों के चेहरों पर रोशनी बिखेरी, वो अब सिनेमा के इतिहास का हिस्सा बन चुका था।
जयपुर में 1941 में जन्मे असरानी बचपन से ही अभिनय के दीवाने थे। घरवाले पढ़ाई और नौकरी के सपने दिखाते रहे । लेकिन असरानी के लिए जीवन का मतलब था, मंच पर खड़े होकर लोगों के दिल जीत लेना। सपनों की गठरी बाँधकर वे पहुँचे फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया पुणे। वहाँ उन्होंने अभिनय की वह बारीकी सीखी जो बाद में उनकी पहचान बनी । संवादों की लय, चेहरे की मासूमियत और भावों की गहराई।
सफलता आसान नहीं थी। कई साल तक उन्होंने संघर्ष किया । छोटे-छोटे किरदार निभाए । हर भूमिका में अपनी पहचान छोड़ दी। धीरे-धीरे फिल्म जगत ने उस नाम को पहचानना शुरू किया । वह नाम था- असरानी।1970 के दशक ने असरानी को वो ऊँचाई दी जहाँ सिर्फ़ प्रतिभा पहुँच सकती है। “आज की ताज़ा खबर” के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट कॉमिक एक्टर अवॉर्ड मिला। और फिर आया वह किरदार जिसने उन्हें अमर कर दिया । “शोले” का जेलर साहब। “हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं…” यह संवाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया।
असरानी की आँखों की चमक, आवाज़ का उतार-चढ़ाव, और संवाद का अंदाज़, यह सब मिलकर एक ऐसा दृश्य रचते हैं जो हर बार देखने पर नया लगता है। पर असरानी सिर्फ़ हास्य अभिनेता नहीं थे। वे उन दुर्लभ कलाकारों में से थे जो हर भाव को जीते थे ।“अभिमान” में संवेदनशील, “छोटी सी बात” में मासूम, “चुपके चुपके” में बुद्धिमान और “हेरा फेरी” में शरारती। हर फिल्म में उनका अपना एक रंग था — कभी हल्का, कभी गहरा, पर हमेशा यादगार।
इतनी प्रसिद्धि के बाद भी असरानी बेहद सरल व्यक्ति थे। सेट पर सबसे पहले पहुँचते, सबको नमस्कार करते । हमेशा वही मुस्कान, वही विनम्रता।वे कहा करते थे — “लोग कहते हैं कॉमेडी आसान है…। पर किसी के उदास दिन में हँसी ला देना, वही सच्ची कला है।” उनकी पत्नी मंजू असरानी खुद भी अभिनेत्री थीं। दोनों की जोड़ी मंच पर नहीं, जीवन में भी उतनी ही सधी हुई थी।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में असरानी मुंबई के भारतीय आरोग्य निधि अस्पताल, जूहू में भर्ती रहे। फेफड़ों में संक्रमण और सांस लेने की तकलीफ थी । लेकिन उन्होंने मुस्कुराना नहीं छोड़ा। डॉक्टरों से मज़ाक करते हुए कहा करते, “इतने साल लोगों को हँसाया है, अब डॉक्टरों की बारी है।”
दीपावली की सुबह, वह मुस्कान थम गई। सांताक्रूज़ में उनका अंतिम संस्कार सादगी से हुआ । पर उस दिन बॉलीवुड की गलियाँ, थिएटर की दीवारें और करोड़ों दर्शकों का दिल, सब चुप थे।
वे उस दौर का प्रतीक थे जब सिनेमा दिल से बनता था, और हँसी कला मानी जाती थी। उनकी हर भूमिका एक सबक थी कि कॉमेडी कभी हल्की नहीं होती, वह सबसे गंभीर अभिव्यक्ति होती है। आज भी जब “शोले” का जेलर याद आता है या “चुपके चुपके” टीवी पर चलेगी तो एहसास होगा कि असरानी कहीं गए नहीं । वे अब भी वहीं हैं… परदे के पीछे, मुस्कुराते हुए। “कला मरती नहीं, बस मंच बदल लेती है।” असरानी अब सिनेमा के उस आकाश में हैं, जहाँ हर हँसी में उनका नाम गूंजेगा।
असरानी का अंतिम पोस्ट

कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये असरानी का अंतिम पोस्ट होगा। उन्होंने दिन में इंस्टाग्राम स्टोरी पर दीपावली से जुड़ा पोस्ट किया। जहां उन्होंने अपने तमाम फैंस को दीपावली की शुभकामनाएं दीं। इसमें लिखा था, ‘हैप्पी दिवाली’. इस पोस्ट के चंद घंटे बाद असरानी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।