रामगढ़ में कल अंतिम संस्कार किया जाएगा
छोटे बेटे बसंत सोरेन देंगे मुखाग्नि

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
नयी दिल्ली: झारखंड आंदोलन और राज्य के 81 वर्षीय सबसे बड़े आदिवासी नेता शिबू सोरेन का निधन हो गया है। शिबू सोरेन पिछले डेढ़ महीने से किडनी संबंधी समस्या के चलते डॉक्टरों की देखरेख में थे। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इलाजरत दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने आज सोमवार की सुबह आखिरी सांस ली। वे 81 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़) में मंगलवार (पांच अगस्त) की दोपहर में दो बजे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। एक सामान्य शिक्षक के घर जन्मे शिबू सोरेन ने पिता की हत्या के बाद राजनीति में प्रवेश किया। फिर झारखंड राज्य के गठन के लिए 40 साल से ज्यादा समय तक संघर्ष किया। शिबू सोरेन (गुरु जी) के निधन के बाद झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया गया है। साथ ही झारखण्ड में तीन दिनों का राजकीय शोक घोषित किया गया है।
शिबू सोरेन कैसे बने दिशोम गुरु
शिबू सोरेन की बायोग्राफी लिखने वाले झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा कि पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ आवाज उठाने की सोची. उन्होंने आदिवासी समाज के एकजुट किया और महाजनों के खिलाफ बिगुल फूंका। तब उन्होंने धनकटनी आंदोलन शुरू किया। जिसमें वे और उनके साथी जबरन महजनों की धान काटकर ले जाया करते थे।
कहा जाता है कि उस समय में जिस खेत में धान काटना होता था उसके चारों ओर आदिवासी युवा तीर धनुष लेकर खड़े हो जाते थे। धीरे धीरे उनका प्रभाव बढ़ने लगा था। आदिवासी समाज के लोगों में इस नवयुवक के चेहरे पर अपना नेता दिखाई देने लगा था, जो उन्हें सूदखोरों से आजादी दिला सकते थे। इसी आदोलन के दौरान शिबू सोरेन को दिशोम गुरु की उपाधि मिली। संताली में दिशोम गुरु का मतलब होता है देश का गुरु। बाद में बिनोद बिहारी महतो और एके राय भी आंदोलन से जुड़ते गए। बाद में उन्हें अपनी राजनीतिक पार्टी की जरूरत महसूस हुई।
दुमका से 8 बार सांसद बने शिबू सोरेन
शिबू सोरेन ने 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में दुमका लोकसभा सीट के लिए चुनावी जीत हासिल की। इसके अलावा तीन बार राज्यसभा के लिए भी चुने गए। केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। 2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन पहली बार झारखंड के सीएम बने, लेकिन 11 मार्च 2005 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। 27 अगस्त 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने , लेकिन तमाड़ विधानसभा चुनाव में हार के कारण 11 जनवरी 2009 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा, इसके बाद वर्ष 2009, दिसंबर में तीसरी बाद सीएम बने,लेकिन कुछ ही दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा।