दुर्गोत्सव पर्व से पूर्व महाल्या के जश्न में पश्चिम बंगाल

एक दिन की दुर्गा पूजा

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
कोलकाता /आसनसोल: कला, सांस्कृतिक, अध्यात्म और क्रांति की जन्मभूमि रही पश्चिम बंगाल दुर्गोत्सव पर एक बार फिर सुर्खियों मे है। लोग महाल्या के जश्न मे डूबे हुए हैं। आसनसोल बर्णपुर के धेनुआ इलाके मे एक दिन की माँ दुर्गा की पूजा होती है। जो सुबह शुरू होती है और शाम को माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करदिया जाता है। इस पूजा मे शामिल होने दूर दराज से भक्तमाँ की अराधना करने पहुँचते हैं। पुरोहित नारायण दत्त के मुताबिक पश्चिम बंगाल में माँ दुर्गा, काली, जगधात्री, माँ मनसा, माँ लखि, माँ सरस्वती यानि की कुल 6 देवियों की पूजा की जाती है, पर माँ दुर्गा की पूजा यहाँ बड़े स्तर होती है। जो पूजा बंगाल मे पाँच दिनों तक होती है। षष्ठी से शुरू होकर विजयादशमी यानी दशमी के दिन समाप्त होती है। यहाँ के बंगाली समाज माँ दुर्गा की पूजा को दुर्गोत्सव के रूप मे मनाते हैं।यहाँ माँ की पूजा एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। ऐसे मे आज रविवार को महाल्या है। जिसे हम नवरात्री के प्रथम दिन के रूप मे जानते हैं और पालन भी करते हैं, ऐसे मे बंगाल की धर्ती पर होने वाली माँ दुर्गा की इस एक दिन की पूजा का अलग ही इतिहास और रहस्य है। जिसका कोई सटीक प्रमाण तो नही है पर लोग अपनी -अपनी मान्यताओं के जरिए माँ दुर्गा की भक्ति करते हैं। भक्तों की ऐसी ही मान्यताओं मे जया और विजया का उल्लेख किया गया है। पुरोहित नारायण दत्त के अनुसार जया और विजया माँ दुर्गा की सहेली तो थी ही उनकी अंग रक्षक भी थीं। पुरोहित के अनुसार जब माँ महिषासुर का वध कर रही थी, तब माँ की दोनों सहेली जया और विजया भी उनकी ढाल बनकर उनके साथ मौजूद थी। पुरोहित के मुताबिक जया और विजया भी देवी और देवताओं के कुल मे आती हैं। जिसके चलते माँ दुर्गा के साथ उनकी भी भक्त पूजा करते हैं। कहा जाता है सच्चे मन से माँ दुर्गा की अराधना के साथ जया और विजया की भी पूजा करने से माँ दुर्गा अत्यंत प्रशसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल मे आयोजित होने वाली हर दुर्गापूजा पंडालों मे माँ दुर्गा की प्रतिमा के साथ एक तरफ जहाँ माँ के पुरे परिवार गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, और कार्तिकेय को देखा जाता है वहीं दूसरी ओर माँ दुर्गा की दोनों सहेलियों को भी माँ के साथ विराजमान कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। हम हिंदू देवी देवताओं से जुड़ी किसी ग्रन्थ की बात करें तो माँ दुर्गा की इन दोनों सहेलियों जया ओर विजया के बारे मे कहीं जिक्र नही मिलता। पर जया और विजया के जगह जय और विजय के नाम का जिक्र आता है। जिनको भगवान विष्णु के शाश्वत निवास वैकुंठ के दो द्वारपाल के रूप मे जाना और पहचाना जाता है। दोनों को एक श्राप के कारण मृत्यु लोक में जन्म लेना पड़ा। कहा जाता है की उन्होंने सत्ययुग में असुर हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप, त्रेतायुग में रावण और कुंभकर्ण, तथा द्वापरयुग में शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया। प्रत्येक बार भगवान विष्णु ने अवतार लेकर उनका वध किया। दोनों की यह कहानी इस बात पर प्रकाश डालती है कि वे भगवान के सबसे प्रिय भक्त होने के बावजूद अपने कर्मों के अनुसार फल भोगते हैं।

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