धार्मिक आस्था को राजनीतिक रंग की कवायद हुई तेज

दीदी के दीघा उद्घाटन पर शुभेंदु अधिकारी का बड़ा ऐलान
जगन्नाथ पुरी से आकर घर -घर बटेगा महाप्रसाद

न्यूज़ फॉक्स संवाददाता
कोलकाता। रथ यात्रा को लेकर धार्मिक आस्था ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा दोघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर के उद्घाटन और घर-घर प्रसाद पहुंचाने की पहल के बीच विपक्ष ने भी जवाबी रणनीति अपनाई है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने घोषणा की है कि इस बार रथ यात्रा के दिन ओडिशा के पुरी से असली महाप्रसाद बंगाल लाया जाएगा और पांच दिनों तक श्रद्धालुओं में बांटा जाएगा। जानकारी के मुताबिक शुभेंदु अधिकारी रथ यात्रा के दिन दोपहर 12 बजे वे कोलकाता में रहेंगे और वहां से सीधे पूर्व मेदिनीपुर के तामलुक जाएंगे।शुभेंदु ने ये दावा किया कि पुरी से दोपहर तीन बजे महाप्रसाद आएगा, जिसे तामलुक के गौरांग महा प्रभु मंदिर में रखा जाएगा और वहीं से इसका वितरण शुरू होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह पुरी के श्रीमंदिर का पारंपरिक महाप्रसाद होगा, जिसे विशेष अनुमति और पवित्रता के साथ मंगवाया गया है। शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि तामलुक में कार्यक्रम के बाद वे शाम चार बजे मेचेदा में इस्कॉन की रथ यात्रा में भी हिस्सा लेंगे। उन्होंने इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ी पहल बताया और कहा कि बंगाल के श्रद्धालुओं को असली महाप्रसाद से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। शुभेंदु की इस घोषणा पर तृणमूल कांग्रेस ने तीखा हमला बोला है। तृणमूल नेता तन्मय घोष ने कहा कि अब भगवान को भी राजनीति में घसीटा जा रहा है। जगन्नाथ जी में आस्था रखने वालों के लिए यह मायने नहीं रखता कि वे दीघा में हैं या पुरी में। दीघा में मंदिर के उद्घाटन के बाद से ही हर दिन हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, यही सच्ची आस्था का प्रमाण है। तृणमूल का आरोप है कि विपक्ष वैकल्पिक प्रसाद बांटकर समाज में धार्मिक विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहा है, जो बंगाली संस्कृति के खिलाफ है। दूसरी ओर भाजपा की ओर से दीघा मंदिर से जुड़े सरकारी फंडिंग पर सवाल उठाए गए हैं। भाजपा नेता जगन्नाथ चट्टोपाध्याय ने आरोप लगाया कि हिडको द्वारा प्रसाद वितरण पर 42 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यह पैसा किस अधिकार के तहत दिया गया, इसकी जांच होनी चाहिए। बंगाल और ओडिशा की सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा जगन्नाथ पूजा और रथ यात्रा अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच प्रतिष्ठा की सीधी लड़ाई बन गई है। एक तरफ सरकार दीघा के मंदिर को नया धार्मिक केंद्र बनाना चाहती है, वहीं दूसरी ओर शुभेंदु अधिकारी ‘असली पुरी के प्रसाद’ के जरिए उसे चुनौती दे रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि लोग इसे आस्था का मामला मानते हैं या राजनीतिक प्रतिस्पर्धा। फिलहाल, राज्य की राजनीति रथ यात्रा के बहाने प्रसाद के खेल में पूरी तरह से उलझी हुई है

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