बिहार में विधान सभा चुनाव की सुगबुगाहट, कौन किस स्थिति में ?

बिहार में विधान सभा चुनाव की सुगबुगाहट, कौन किस स्थिति में ?

आज यक़ीन करना मुश्किल लगता है कि 1952 तक बिहार देश का सबसे सुशासित राज्य था , लेकिन यह विडंबना है कि समकालीन राजनीति में उसी बिहार का उल्लेख सबसे अराजक राज्य के रुप में होता है. इसी बिहार ने आज़ादी के बाद का देश का अकेला जनआंदोलन खड़ा किया लेकिन यही बिहार ग़रीबी और कुपोषण से लेकर राजनीति के अपराधीकरण तक के लिए बदनाम भी सबसे अधिक हुआ.

बिहार की सामाजिकआर्थिक स्थिति में सरकार और राजनीति का अहम योगदान रहा है। लोकसभा का चुनाव खत्म होते ही बिहार में विधानसभा की चर्चा होने लगी है। आधिकारिक तौर इस बाबत कोई जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन हाल ही में इंडिया ब्लाक में शामिल वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने अपने कार्यकर्ताओं को विधानसभा चुनाव के लिए अलर्ट मोड में रहने की बात कह कर चर्चा की शुरुआत कर दी है। लोकसभा चुनाव के पहले भी विधानसभा चुनाव की चर्चा शुरू हुई थी।

नीतीश कुमार अगर लोकसभा की 12 सीटों पर मिली जीत को आधार बना कर विधानसभा चुनाव में सफलता का सपना देख रहे हों तो यह आसान नहीं दिखता। लोकसभा चुनाव के परिणाम विधानसभा चुनाव में पलटते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की कुल 40 सीटों में 39 जीत ली थी। अगले साल यानी 2020 में विधानसभा के चुनाव हुए तो जेडीयू 43 सीटों पर गया, जिसकी टीस अब भी नीतीश के मन में बनी हुई है। इतना ही नहीं, महागठबंधन ने एनडीए का ऐसा पीछा किया कि महज 12 सीटों के कारण उसे पीछे छूट जाना पड़ा। महागठबंधन को भी इसका भारी दुख अब तक है। आरजेडी ने अकेले 80 सीटें जीतीं तो उसके सहयोगियों में सीपीआई (एमएल) ने 12, सीपीआई ने दो, सीपीएम ने दो और कांग्रेस ने 19 सीटें जीतीं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीती थीं, जिनमें चार ने आरजेडी का झंडा थाम लिया। एक वक्त आरजेडी के पास सहयोगी दलों को मिला कर विधायकों की संख्या 115 तक पहुंच गई थी। दूसरी ओर एनडीए के पास 125 विधायक थे।

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