महिला वर्ल्ड कप के इस मुकाबले ने 1983 की याद ताज़ा कर दी

मनु कृष्णा
महिला वर्ल्ड कप में भारत की महिला खिलाड़ियों के कारनामे से अपने देश के ही नहीं, पूरी दुनिया के उन लोगों ने वज्द (परमानन्द) महसूस किया, जो क्रिकेट की शास्त्रीयता, नैतिकता और रोमांच के मुरीद हैं। महान क्रिकेटर सर डोनल्ड ब्रैडमैन ने कहा था – ‘मेरी कामना है कि क्रिकेट फलता-फूलता रहे, इसका दायरा बढ़ता रहे। इससे दुनिया और समृद्ध होगी।’ भारतीय महिला खिलाड़ियों की ख़िताबी जीत ने क्रिकेट का दायरा बढ़ने और इसमें नए सितारों के उदय की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। यह जीत भारतीय क्रिकेट के लिए उसी तरह नई खिड़कियाँ खोलेगी, जैसे 1983 में हमारी पुरुषों की टीम ने पहली बार वर्ल्ड कप जीत कर खोली थीं। भारतीय क्रिकेट का कर्ता-धर्ता संगठन अब आर्थिक मोर्चे पर वैसा ख़स्ता हाल नहीं है, जैसा 1983 में था। तब उसके ख़ज़ाने में इतना धन भी नहीं था कि विश्व विजेता टीम को इनाम के तौर पर कुछ दिया जाता। उस समय बीसीसीआई की कमान संभाल रहे एन.के.पी. साल्वे (जो केंद्रीय मंत्री भी थे) को स्वर कोकिला लता मंगेशकर की शरण लेनी पड़ी। नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में 17 अगस्त,1983 को लता जी के कंसर्ट का आयोजन कर विजेता टीम को इनाम के लिए धन जुटाया गया था। उस कंसर्ट में राजीव गाँधी ने कहा था – ‘हमारे खिलाड़ियों में कभी कोई अच्छा खेलता था, कभी कोई अच्छा खेलता था, लेकिन इस बार (1983 वर्ल्ड कप का फाइनल) सभी मिल कर खेले और नतीजा सबके सामने है।’
रविवार की रात महिला वर्ल्ड कप के फाइनल में भी भारतीय महिला टीम ने शानदार तालमेल का प्रदर्शन कर जीत को अपनी तरफ़ मोड़ लिया। एकबारगी मैच मेज़बान टीम की मुट्ठी में जाता लग रहा था, लेकिन उत्तर प्रदेश की डीएसपी दीप्ति शर्मा ने बल्लेबाज़ी के बाद गेंदबाज़ी में भी कमाल कर दक्षिण अफ्रीका की उड़ान को ज़मीन पर ला दिया। दक्षिण अफ्रीका की खिलाड़ियों की आँखों में आँखें डाल कर भारतीय टीम की ख़िताबी जीत सनद है कि सधी हुई रणनीति, बेहतर तालमेल और भरपूर हौसले के दम पर बड़ी से बड़ी चुनौती को पार किया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका की खिलाड़ियों की भी तरीफ़ की जानी चाहिए कि उन्होंने मैदान में अपने हौसले पस्त नहीं होने दिए और डट कर भारतीय टीम का मुक़ाबला किया। यही असली खेल भावना है कि मैच भले हाथ से फिसल रहा हो, खिलाड़ियों के प्रदर्शन में दरार नज़र नहीं आनी चाहिए।
क्लाइव लॉयड ने एक बार कहा था – ‘क्रिकेट को लेकर भारत जैसा जुनून और कहीं नहीं है।’ हमारे देश में क्रिकेट में बड़े कारनामे करने वालों को देवता माना जाता है। महिला वर्ल्ड कप के फाइनल के बाद भारत को नई देवियाँ मिल गई हैं। देश में महिला क्रिकेट अब नई करवट लेगा। फाइनल में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन से यह भी शिद्दत से महसूस हुआ कि ‘सज्जनों’ के इस खेल के हर चक्रव्यूह को भेदने के मंत्र हमारी महिला ब्रिगेड के हाथ लग गए हैं। उसकी यह धार बरक़रार रहनी चाहिए। महिला क्रिकेट में नई पौध तैयार करने पर और ध्यान देने की ज़रूरत है।