
राजस्थान के सरकारी अस्पताल में मिलने वाली कफ सिरप कॉपी कर दो बच्चों की मौत और कई बच्चों के बीमार होने को लेकर बाद अपडेट अधिकारियों ने केवल तीन दिन के भीतर ही शुरुवाती तौर पर संदेह के घेरे में आई इस कफ सिरप को ही पूरी तरफ से “क्लीन चिट”दे दी। अधिकारी तो यह भी कह रहे हैं कि डॉक्टर ने मरने या बीमार कोई बच्चों को यह कफ सिरप लिखी ही नहीं थी।
न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
भरतपुर और सीकर:राजस्थान में सरकारी अस्पतालों की कफ सिरप पीने के बाद दो बच्चों की मौत 30 से भी ज्यादा बच्चों के बीमार होने की ख़बर आई। भरतपुर और सीकर दोनों जगह पसरा मातम। सवाल उठा—क्या ये उसी दवा के चलते हुआ, जो निःशुल्क दवा योजना के तहत सरकार ने खुद बांटी थी? शुरुआती जांच में शक भी गया इसी सिरप पर। बच्चों के परिजनों ने भी कहा कि सरकारी दवा ने बच्चों की जान ले ली। सरकार ने भी हड़कंप में तुरंत हाई लेवल कमेटी बना दी, सैंपल लैब में भेजे गए। और अब रिपोर्ट आई है—सब क्लीन! सरकारी लैब की रिपोर्ट में कहा गया कि दवा में कोई खराबी नहीं।, यही नही, इससे पहले सरकार की तरफ से यह भी दावा भी किया गया था कि बच्चों को केयसन्स फार्मा की बनाई Dextromethorphan सिरप डॉक्टरों ने लिखी ही नहीं।

लेकिन कहानी यहीं नहीं खत्म होती। भरतपुर में पिता ने अपनी दवा अपने बच्चे को पिला दी। सीकर में मां ने घर में पड़ी वही सिरप बच्चे को दे दी—रात को बच्चा सोया, सुबह उठा ही नहीं। रिपोर्ट कहती है—“डॉक्टर ने दवा नहीं लिखी थी। फिर भी स्वास्थ्य विभाग ने बोतलों की सप्लाई रोक कर, तीन सदस्यीय कमेटी बना दी।
लेकिन असली सवाल सरकार से ये हैं कि अगर डॉक्टरों ने नहीं लिखी, तो बोतलें लोगों के घर तक पहुंची कैसे? निगरानी का सिस्टम सोया था या गड़बड़ी को अनदेखा किया गया? क्या एक रिपोर्ट की ‘क्लीन चिट’ बच्चों की मौत की जिम्मेदारी मिटा देती है? ये कहानी वही सरकारी ढांचा दिखाती है, जो हादसे के बाद एक्टिव होता है…कागजों में मीटिंग, फाइलों में जांच, और रिपोर्ट में क्लीन चिट। मगर ज़मीन पर दो घरों में अब भी सन्नाटा है—और वो सन्नाटा पूछता है, आखिर इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है?