राज्यपाल ने अपराजिता विधेयक पुनर्विचार के लिए राज्य सरकार को लौटाया

टीएमसी सांसद राष्ट्रपति से जल्द मंज़ूरी का कर चुके है आग्रह

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
कोलकाता:अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 में मृत्युदंड के प्रावधानों पर चिंता जताते हुए, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने इस विधेयक को आगे विचार के लिए राज्य सरकार को लौटा दिया है।पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 3 सितंबर, 2024 को सर्वसम्मति से अपराजिता विधेयक पारित किया था, जिसमें यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में कड़ी सज़ा का प्रावधान था। राज्यपाल द्वारा यह विधेयक 6 सितंबर, 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजा गया था।
कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के 25 दिन बाद पारित इस विधेयक में पाँच श्रेणियों के अपराधों में मृत्युदंड का प्रावधान है – बलात्कार, पुलिस अधिकारी या लोक सेवक द्वारा बलात्कार, मृत्यु का कारण बनने वाला बलात्कार या लगातार निष्क्रिय अवस्था में पहुँचाना, सामूहिक बलात्कार और बार-बार अपराध करना।

राजभवन के अधिकारियों ने बताया कि विधेयक में उन मामलों में मृत्युदंड को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव है जहाँ पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या उसे निष्क्रिय अवस्था में छोड़ दिया जाता है, जिसके तहत बीएनएस की धारा 66 लागू होती है। अधिकारी ने कहा, “गृह मंत्रालय ने ऐसे मामलों में न्यायिक विवेकाधिकार को समाप्त करने पर चिंता जताई है।”राजभवन के मुताबिक , विधेयक में बीएनएस, 2023 की धारा 65 को भी हटाने का प्रस्ताव है, जिससे 16 वर्ष से कम और 12 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के साथ बलात्कार के लिए सजा में अंतर समाप्त हो जाएगा।

यह घटनाक्रम तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा केंद्र सरकार से इस विधेयक को मंज़ूरी देने के लिए बार-बार की गई अपील के बीच सामने आया है। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने 13 फरवरी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात कर इस विधेयक को जल्द मंज़ूरी देने का आग्रह किया था।
कुछ क़ानून विशेषज्ञों ने अपराजिता विधेयक को पश्चिम बंगाल सरकार की जल्दबाजी में लिया गया क़दम बताया था।

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