वंदे मातरम को लेकर सियासत गरमाई

शिक्षा मंत्री का फरमान- मदरसों में भी होगा वंदेमातरम

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता

जयपुर :7 नवंबर को वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो रहे हैं। “राजस्थान में ‘वंदे मातरम’ फिर सियासत के केंद्र में है। इस बार मुख्या कारण है — शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का नया फरमान। मंत्री जी ने कह दिया कि अब मदरसों में भी रोजाना ‘वंदे मातरम’ गाना जरूरी होगा। और बस… यहीं से शुरू हो गई राजनीति — कोई इसे राष्ट्रभक्ति बता रहा है, तो कोई धार्मिक हस्तक्षेप। “
7 नवंबर को वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो रहे हैं — और राज्य सरकार ने इसे पूरे साल भर मनाने का फैसला किया है।मदन दिलावर का कहना है कि यह कदम देशभक्ति और एकता की भावना को मज़बूत करने के लिए उठाया गया है — धर्म के खिलाफ नहीं।

शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का कहना है कि वंदे मातरम गाना किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह राष्ट्र के प्रति हमारा सम्मान है। अब हर दफ्तर, हर स्कूल में सुबह वंदे मातरम और शाम को राष्ट्रगीत गाया जाएगा।लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। क्योंकि जैसे ही मंत्री जी ने कहा — ‘मदरसों में भी वंदे मातरम गाना होगा’ — सियासत गरमा गई।मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता में दखल बताया है।
कांग्रेस ने भी मोर्चा संभालते हुए आरोप लगाया कि बीजेपी राष्ट्रगीत के नाम पर भी राजनीति कर रही है।पूर्व वक्फ बोर्ड अध्यक्ष खानू खान बुधवाली ने कहा — भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहां किसी को ज़बरदस्ती किसी प्रार्थना के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। वही, विपक्ष कांग्रेस का कहना है कि राष्ट्रगीत को जबरदस्ती का मुद्दा बनाकर सरकार असल समस्याओं — शिक्षा, बेरोजगारी, और स्कूलों की स्थिति — से ध्यान भटका रही है। पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि इन लोगों को जो काम करना चाहिए वह नहीं करते धार्मिक उन्माद फैलाने का काम करते हैं ।

राजस्थान वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष खानू खान बुधवालीके मुताबिक सरकार को यह अधिकार नहीं कि वो तय करे कौन क्या प्रार्थना करे। अगर सरकार को वाकई मदरसों की चिंता है, तो शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और रोजगार पर काम करे।
जबकि पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के मुताबिक वंदे मातरम पहले भी गाया जाता रहा है। लेकिन बीजेपी इसे नया मुद्दा बनाकर अपनी नाकामियों से ध्यान भटका रही है।राजस्थान में मदरसों को लेकर विवाद कोई नया नहीं है।अशोक गहलोत सरकार के समय मदरसों के आधुनिकीकरण पर बजट आया था — तब बीजेपी ने इसे ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ कहा था।अब सत्ता पलटी है, तो वही मदरसे एक बार फिर चर्चा में हैं — इस बार ‘वंदे मातरम’ के नाम पर। यानी मुद्दा वही है, बस चेहरा और सरकार बदल गई है। कभी बीजेपी को गहलोत की मदरसा नीति खटकती थी, अब कांग्रेस को बीजेपी की राष्ट्रगीत नीति… बहरहाल, वंदे मातरम — ये सिर्फ एक गीत नहीं, एक भावना है। लेकिन जब भावना भी राजनीति में बदल जाए, तो सवाल उठता है — क्या देशभक्ति भी अब आदेशों में बंधेगी?

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