विजयादशमी पर दिल्ली से कोलकाता तक “सिंदूर खेला के रंग”

सिंदूर की लाली में बसी विदाई की वेदना,पटना में बंगाली महिलाओं ने निभाई परंपरा
चित्तौड़गढ़ में बंगाली समाज ने मनाई 450 साल पुरानी परंपरा

न्यूज़ बॉक्स ब्यूरो
नयी दिल्ली /कोलकाता; विजयदशमी उत्सव के साथ 10 दिवसीय उत्सव का भव्य समापन हो गया है. आज बंगाली समुदाय में सिंदूर खेला की परंपरा निभाई गई. दिल्ली के सीआर पार्क और कोलकाता से सिंदूर खेला की तस्वीरें सामने आईं. दिल्ली के सीआर पार्क में जबरदस्त उत्साह देखा गया।
बिहार की राजधानी पटना में सिंदूर खेला. नौ दिनों की देवी पूजा के बाद माता को विदायी देने के लिए बंगाली समुदाय को लोग इस रस्‍म को धूमधाम से मनाया। बंगाली परंपरा में देवी दुर्गा को घर की बेटी माना जाता है। दशमी के दिन यह माना जाता है कि बेटी अपने मायके से ससुराल लौट रही है। इसी प्रतीकात्मक विदाई को महिलाएं खुशी और भावनाओं के साथ मनाती हैं। महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, ढाक की थाप पर नृत्य करती हैं और देवी के समक्ष आशीर्वाद मांगती हैं। इस अवसर पर पूजा समिति परिसर में महिलाओं ने पारंपरिक लाल-सफेद साड़ियों में नृत्य कर माहौल को भक्तिमय बना दिया। सिंदूर से सजे चेहरे और देवी की आराधना के बीच वातावरण भावनाओं से भर गया। इस बीच माता को विदाई देते समय महिलाओं की आंखों में आंसू भी आ गए. विदाई की इस रस्‍म के साथ नौ दिनों की दुर्गा पूजा का आज समापन हो गया।

म प्र की राजधानी भोपाल के टीटी नगर स्थित कालीबाड़ी में दुर्गोत्सव के दौरान बंगाल की पारंपरिक झलक देखने को मिली….बंगाली समाज की महिलाएं हर साल की तरह इस बार भी मां दुर्गा की विदाई से पहले ‘सिंदूर खेला’ की रस्म निभाती नजर आईं…कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नंदा भी मौजूद रहीं…बता दें परंपरागत विधि से सिंदूर दान के साथ मां दुर्गा की विदाई की जाएगी…इस दौरान बड़ी संख्या में बंगाली समाज के परिवार मौजूद रहे… और मां के दर्शन किए….पारंपरिक ढाक की धुन पर महिलाएं नृत्य करती हुईं सिंदूर खेला में शामिल हुईं… विवाहित महिलाओं ने माता रानी को सिंदूर अर्पित कर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त किया और फिर एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाया…
राजस्थान चित्तौड़गढ़ में पांच दिनों तक दुर्गा मां की आराधना करने के बाद विजयादशमी को बंगाली समाज की सुहागिन महिलाओं ने सिंदूर बोरोन की परंपरा निभाई। गुरुवार शाम को मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जित करने से पहले बंगाली समाज ने सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव मनाया।

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