कौन रच रहा है बंगाल को रक्तरंजिश करने की साजिश ?

कौन रच रहा है बंगाल को रक्तरंजिश करने की साजिश ?

बंगाल की राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन चुके वहाँ की ‘राजनीतिक हिंसा’ की अनूठी प्रकृति को समझने का प्रयास!

लोकसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम चरण में शनिवार को पश्चिम बंगाल में नौ संसदीय क्षेत्रों में मतदान के दौरान छिटपुट हिंसक घटनाएं हुईं। जादवपुर एवं डायमंड हार्बर निर्वाचन क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस, इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई। वैसे निर्वाचन आयोग ने दावा किया किया है कि अबतक मतदान शांतिपूर्ण रहा है तथा उसे 11 बजे तक ईवीएम के काम नहीं करने एवं एजेंट को मतदेय स्थल पर जाने से रोकने जैसी 1450 शिकायतें मिली हैं। निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि शनिवार को पश्चिम बंगाल की नौ लोकसभा सीट पर पूर्वाह्न 11 बजे तक 1.63 करोड़ मतदाताओं में से करीब 28.10 प्रतिशत ने वोट डाला। राज्य के विभिन्न हिस्सों में तृणमूल कांग्रेस, आईएसएफ और भाजपा के समर्थकों के बीच झड़पें हुईं। वे मतदान केंद्र में चुनाव एजेंट को जाने से रोकने पर एक दूसरे से भिड़ गये। जादवपुर संसदीय क्षेत्र के भांगर में तृणमूल और आईएसएफ के समर्थकों के बीच टकराव हो गया। आरोप है कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर देशी बम फेंके।

भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल की जनसंख्या लगभग 10 करोड़ है , यहां राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास है, जो कई दशकों से चला रहा है और जिस ने राज्य की राजनीति पर जटिल और गहरा प्रभाव डाला है. पश्चिम बंगाल में हिंसा और राजनीति एक दूसरे के पूरक हैं. जब भी पश्चिम बंगाल में राजनीति की बात होती है तो पहले वहां की सियासी हिंसा की चर्चा होती है. देश के करीब-करीब हर राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की छिटपुट घटनाएं होती हैं. यानी सभी राज्यों में हिंसा चुनावी होती है. वहीं, पश्चिम बंगाल में हिंसा का नाता चुनाव से नहीं राजनीति से हो गया है. पश्चिम बंगाल में दशकों से राजनीतिक हिंसा आम बात है.

क्या क्षेत्रीय राजनीति है इस हिंसा की जिम्मेदार


पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर 1960 के बाद शुरू हुआ. उसके बाद 1967 में राज्य में लेफ्ट पार्टी की सरकार आई जो 2011 तक यानी 34 साल तक रही. एक आंकड़े के मुताबिक इन 34 वर्षों के दौरान राज्य में राजनीतिक हिंसा में 28 हजार लोग मारे गए. ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन को पश्चिम बंगाल की सरकार ने जिस हिंसात्मक तरीके से दबाया वो ताबूत में आखिरी कील साबित हुई और 34 साल की लेफ्ट सरकार का पतन हुआ. लोगों को उम्मीद जगी कि अब सरकार बदलने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पंचायत चुनाव हो या विधानसभा-लोकसभा चुनाव, पश्चिम बंगाल में हिंसा कम नहीं हुई. अब तो बिना किसी चुनाव के भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर हमला आम बात हो गई है.

तो आखिर कैसे बदलेगी तस्वीर
बंगाल में लेफ्ट के 34 साल और ममता बनर्जी के 13 साल के कार्यकाल में राजनीतिक हिंसा की तस्वीर बदलती नजर नहीं आई. ऐसे में लोगों की उम्मीद अब किसी तीसरे विकल्प पर है. यह विकल्प 2026 के विधानसभा चुनावों में तय होगा. साफ है कि पश्चिम बंगाल की जनता के सामने लेफ्ट और कांग्रेस, टीएमसी और बीजेपी तीन विकल्प होगें. जिनमें कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी का विकल्प वहां की जनता पहले ही आजमा चुकी है. ऐसे में बीजेपी अपने आप को राज्य में मजबूत विकल्प के रूप में देख रही है. शायद इसीलिए बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है.

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