राजनीति-धर्म :भाषा का क्यों बन रहा तमाशा ?

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
हावड़ा:हावड़ा मैदान के शरत सदन इलाके में रथ यात्रा के बैनर पर उर्दू में ‘रथ यात्रा’ लिखा हुआ है। श्री राम स्वाभिमान परिषद के समर्थकों ने इस उर्दू लेखन को लेकर हावड़ा पुलिस स्टेशन के सामने विरोध प्रदर्शन किया और थाने में शिकायत दर्ज की। उन्होंने आरोप लगाया कि रथ यात्रा मेले के होर्डिंग में अंग्रेजी और उर्दू का इस्तेमाल तो किया गया है, लेकिन बंगाली या हिंदी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। वे चाहते हैं कि चूंकि मेला हावड़ा नगर निगम के स्थान पर आयोजित किया जा रहा है, इसलिए होर्डिंग बंगाली या हिंदी अंग्रेजी में होना चाहिए उर्दू में नहीं।

राजनीति में धर्म का आना कोई नई बात नहीं है क्यूंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और ना ही ये आख़री बार है लेकिन आज जो तस्वीरें सामने आयी है जिसे देख एक नये विवाद का जन्म हो गया है, कहीं न कहीं अब सवाल भी उठने लगा है की क्या ये बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की भावनाओं को आहत करने का प्रयास है या फिर तुस्टीकरण की राजनीति की नई पराकाष्ठा है। रथयात्रा के पोस्टर को लेकर जानकारी उर्दू भाषा में बोर्ड पर लिख कर प्रचार और प्रसार किया जा रहा है। अब इसमें दो बड़े सवाल जनता के मन से भी उठने लगे है की क्या यह प्रचार संस्कृत भाषा में नहीं लिखा जाना चाहिए। जो की सनातन का परिचायक भाषा के तौर पर जाना जाता है? क्या आपको यह नहीं लगता है की इससे भगवान जगन्नाथ जी की शोभा में सनातनी रंग भर जाता ? दूसरा की क्या अल्पसंख्यक समुदाय के त्योहारों का प्रचार संस्कृत भाषा में लिख कर किया जा सकता है ? क्या इससे धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होंगी ? और अगर ये गंगा -जमुनी तहजीब की बात है तो फिर बात बराबरी की होनी चाहिए थी ? लेकिन जो सबसे ज़रूरी बात है वो यही निकल कर आ रही है की त्योहारों को लेकर किसी की भी धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुचनी चाहिए और यह तय करना सरकार और प्रशासन का काम है!