त्वरित विश्लेषण:उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा ?

क्या ये सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से है या सत्ता के भीतर कुछ और चल रहा है?


मनु कृष्णा

नयी दिल्ली :भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत दिया गया उनका इस्तीफा तत्काल स्वीकार किया और गृह मंत्रालय ने इसका नोटिफिकेशन जारी किया । हालांकि कारण ‘स्वास्थ्य’ बताया गया है, लेकिन सियासी संकेत और घटनाक्रम कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं। धनखड़ न सिर्फ अचानक इस्तीफा देकर चले गए, बल्कि परंपरा के विपरीत उन्होंने कोई विदाई भाषण भी नहीं दिया। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे उल्लेखनीय बात रही कि प्रधानमंत्री मोदी के अलावा बीजेपी के शीर्ष नेताओं – नड्डा, शाह, राजनाथ – किसी ने सार्वजनिक रूप से न तो कोई बयान दिया, और न ही कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया जताई। यह चुप्पी खुद एक राजनीतिक संकेत बन गई।

प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्वीट कर लिखा,श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं। लेकिन पीएम के इस शालीन संदेश के इतर बाकी नेतृत्व का मौन, अटकलों को और बल देता है।

धनखड़ के इस्तीफे की एक अहम वजह मानी जा रही है – उनका हालिया रुख, जो बीजेपी की रणनीति से मेल नहीं खा रहा था। खासकर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव को जिस तत्परता से उन्होंने स्वीकार कर लिया, वह सत्ता पक्ष के लिए चौंकाने वाला था।

सूत्र बताते हैं कि धनखड़ जी ने महाभियोग नोटिस को सदन में स्वीकार करने से पहले न प्रधानमंत्री कार्यालय से बात की, न संसदीय कार्य मंत्रालय से और न ही पार्टी नेतृत्व को कोई पूर्व सूचना दी। इस कदम ने न सिर्फ बीजेपी को असहज किया बल्कि उच्च सदन की गरिमा और उसकी प्रक्रिया को लेकर भीतर ही भीतर विवाद की स्थिति भी पैदा की।
खबर ये भी है कि धनखड़ बीजेपी नेतृत्व से कुछ समय से असंतुष्ट थे। हाल ही में उन्होंने राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई, लेकिन न तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा पहुंचे, और न ही केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू। धनखड़ इससे खासे नाराज़ बताए जा रहे हैं।बाद मे सूत्रों के हवाले से बताया गया की हम किसी अन्य जरूरी संसदीय कार्य में व्यस्त थे और इसकी जानकारी उपराष्ट्रपति कार्यालय को दे दी गई थी।
सूत्रों के मुताबिक बीते कुछ महीनों से उपराष्ट्रपति धनखड़ के रवैये से सरकार असहज थी। जजों और न्यायपालिका पर की गई कई टिप्पणियों को गैर-ज़रूरी और अति-आक्रामक माना गया।विपक्ष के प्रति अचानक ‘नरमी’ और उनके सुझावों को महत्व देने का रुझान।सदन की कार्यवाही में चेयर की भूमिका निभाते हुए धनखड़ की अतिसक्रियता।बिना सलाह के फैसले लेना — ये सब सरकार को खटकने लगे थे।
धनखड़ ने ऐसे समय पर इस्तीफा दिया है, जब मानसून सत्र के दूसरे हफ्ते में सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ने की संभावना है। जस्टिस वर्मा पर महाभियोग का मुद्दा, ट्रंप के बयान, और ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों पर विपक्ष पहले से सरकार को घेर रहा है। ऐसे में उपराष्ट्रपति का जाना सरकार के लिए सिर्फ संवैधानिक नहीं, राजनीतिक चुनौती भी है।
धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ व्यक्तिगत कारणों का नतीजा नहीं लगता। यह सत्ता के भीतर मतभेद, असहमति और असंतुलन की ओर इशारा करता है। अब सबकी निगाह इस पर है कि एनडीए अगला उपराष्ट्रपति किसे बनाता है। क्या वह एक भरोसेमंद पार्टीलाइन चेहरा होगा, या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जो विपक्ष को भी साध सके?
धनखड़ का इस्तीफा एक संवैधानिक प्रक्रिया है, लेकिन इसके पीछे की सियासत अब चर्चा के केंद्र में है। बीजेपी नेतृत्व की चुप्पी, विपक्ष की सतर्कता और सत्ता के भीतर बेचैनी — तीनों मिलकर इस घटनाक्रम को सामान्य नहीं रहने दे रहे हैं। नई नियुक्ति क्या संदेश देती है, इस पर भविष्य की राजनीति निर्भर करेगी।

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