जन सुराज कम से कम 40 टिकट अल्पसंख्यक समुदाय को देगा:PK

मनु कृष्णा
पटना :बिहार की राजनीति में 2025 से पहले बड़ा बदलाव दिख रहा है। चुनावी मैनेजर से सियासी खिलाड़ी बने प्रशांत किशोर ने अपने नए दांव से महागठबंधन और एनडीए दोनों को बेचैन कर दिया है।बिहार की राजनीति हमेशा से सामाजिक समीकरण और जातीय गणित पर टिकी रही है। लेकिन इस बार तस्वीर अलग है।जन सुराज अभियान चला रहे प्रशांत किशोर ने सीधा दांव मुस्लिम वोट बैंक पर लगाया है।
बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17.7% है। परंपरागत रूप से यह वोट कांग्रेस और बाद में आरजेडी के साथ जुड़ा रहा। लेकिन 2020 के चुनाव में एआईएमआईएम की एंट्री ने इस मिथक को तोड़ दिया।प्रशांत किशोर ने बड़ा ऐलान किया है कि जन सुराज कम से कम 40 टिकट अल्पसंख्यक समुदाय को देगा। यह कदम सीधे-सीधे मुस्लिम समाज की राजनीतिक भागीदारी को संबोधित करता है।
पीके का आरोप है कि महागठबंधन ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। आरजेडी टिकट तो देती है, लेकिन वहां नहीं जहां उनकी संख्या निर्णायक हो। यही नाराजगी पीके भुनाना चाहते हैं। 2020 के नतीजे बताते हैं कि मुस्लिम वोट अब बंट चुका है।आरजेडी – 8 मुस्लिम विधायक,कांग्रेस – 4,एआईएमआईएम – 5, यानी समाज अब नए विकल्प तलाशने लगा है। ।
हालांकि सीमांचल की राजनीति में प्रशांत किशोर के इम्पैकट को लेकर किशनगंज के स्थानीय लोगो में अलग अलग मत है। किशनगंज के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि किशनगंज की राजनीति दूसरे तरह की है और यहां के मतदाता या तो NDA को वोट देते है या फिर इंडी ब्लॉक को वोट करते है। बिहार की राजनीती को नजदीक से जानने वाले विश्लेषकों का मानना है कि किशनगंज कांग्रेस का गढ़ माना जाता है यहां प्रशांत किशोर अगर वोट काटते भी है तो NDA का वोट काटेंगे जबकि कई अन्य ने कहा कि यहां के लोग स्थानीय मुद्दे पर वोट करते है और प्रशांत किशोर की राजनीति यहां नहीं चलेगी।जबकि कुछ का कहना है कि प्रशांत किशोर का असर बिहार के साथ साथ किशनगंज में भी पड़ेगा और NDA को नुकसान होगा। वही स्थानीय निवासी मो निजामुद्दीन का कहना है कि NDA को थोड़ा नुकसान होगा लेकिन यहां के नागरिक काफी समझदार है और सोच समझ कर ही वोट डालेंगे
एक राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक अब तक महागठबंधन पीके को “बीजेपी की बी टीम” बताता रहा। लेकिन जबसे उन्होंने बीजेपी नेताओं को टारगेट करना शुरू किया है, समीकरण बदल गए हैं।बीजेपी को भी डर है कि जन सुराज न सिर्फ मुस्लिम वोट बल्कि गैर-यादव ओबीसी और अति पिछड़े वोट में सेंध लगा सकता है।प्रशांत किशोर अब साफ संदेश दे रहे हैं कि वह महज थर्ड फ्रंट नहीं, बल्कि फुल स्केल प्लेयर हैं।
इतिहास गवाह है कि मुस्लिम वोट बैंक जब-जब बदला, बिहार की सत्ता का रुख भी बदल गया। 70 के दशक में कांग्रेस, 90 के दशक में आरजेडी और 2020 में सीमांचल में एआईएमआईएम।अब सवाल यह है कि 2025 में क्या जन सुराज उस भरोसे को अपनी तरफ खींच पाएगा?या फिर विरोध की ये गूंज भी पुलिसिया कार्रवाई में दब जाएगी?