कहां गायब है सिलेंडर के जरिये सड़को पर प्रदर्शन करने वाले भाजपाई नेता
मनु कृष्णा
महंगाई की लड़ाई में जनता अकेली खड़ी है। जिन नेताओं ने सिलेंडर उठाकर नारे लगाए थे, उन्होंने आज सत्ता का सुख पाकर अपने गले में ताला डाल लिया है। दस साल पहले जो आंसू जनता की आंखों में देखे गए थे, आज वही आंसू और गहरे हैं, लेकिन उन्हें पोंछने वाला कोई नहीं। सवाल साफ है कि क्या महंगाई सिर्फ विपक्ष में रहते हुए दिखती है? सत्ता में आने के बाद क्या जनता का दर्द गायब हो जाता है?
अगर यही राजनीति है तो फिर जनता को भी तय करना होगा कि अगली बार वोट देते वक्त याद रखे कि सिलेंडर उठाकर फोटो खिंचवाना आसान है, लेकिन जनता की थाली भरना सबसे मुश्किल है । कहां गए वे बीजेपी के नेता जिन्होंने वादा किया था कि पेट्रोल, चीनी, दाल और बुनियादी वस्तुओ के दाम कम होंगे । दाम तो कम नही हुए, अलबत्ता बुनियादी वस्तुए लोगो की हैसियत से बाहर होगई । अब तो बाबा रामदेव को भी महंगाई दिखाई नही देती है जिसने 40 रुपये लीटर पेट्रोल उपलब्ध कराने के लिए बीजेपी को वोट देने की अपील की थी ।
दस साल पहले की तस्वीरें आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं। सिलेंडर थामे अरुण जेटली महंगाई के खिलाफ गरज रहे थे, लालकृष्ण आडवाणी रैलियों में जनता का गुस्सा भड़का रहे थे, नरेंद्र मोदी भाषणों में महंगाई को ‘जनता की लूट’ बता रहे थे और स्मृति ईरानी सड़कों पर सिलेंडर लेकर नारेबाज़ी कर रही थीं। हर जगह एक ही आवाज़ गूंज रही थी कि “महंगाई हटाओ, जनता बचाओ।” न महंगाई हटी और न ही जनता बची ।
आज वही भाजपा सत्ता में है और हालात पहले से कहीं ज्यादा दयनीय है । दाल, चावल, चीनी, गैस सिलेंडर, पेट्रोल-डीज़ल आदि के दामो में हर रोज़ इजाफा हो रहा हैं, लेकिन सत्ता के गलियारों में घोर सन्नाटा है। जनता की जेब पर डाका पड़ रहा है और नेताओं की ज़ुबान को लकवा मार गया है ।
याद कीजिए, भाजपा ने महंगाई को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाकर जनता से वोट बटोरे थे। लेकिन अब वही महंगाई सरकार की गोद में बैठी है और जनता की रसोई में ज़हर घोल रही है। चुनावी मंचों पर बड़े-बड़े भाषण देने वाले नेता आज दिखाना भी नहीं चाहते कि जनता किस संकट से गुजर रही है। सिलेंडर थामकर नारे लगाने वाले अब कैमरों से बचते हैं। दाल और चीनी की कीमत पर आँसू बहाने वाले अब सत्ता की मलाई खाते हैं। कभी “महंगाई पर हमला” भाजपा का नारा था, आज “महंगाई पर खामोशी” उसकी पहचान बन गई है।
जनता पूछ रही है कि “आख़िर वो सिलेंडर कहाँ गया? वो नारे कहाँ गए? और वो नेता कहाँ गए, जो हर रैली में महंगाई का रोना रोते थे?” स्थिति बड़ी भयावह है । यह सही है कि महंगाई पर लगाम कसना हर किसी के वश में नही है । लेकिन पिछले दस सालों में जिस गति से महंगाई में इजाफा हुआ है, उससे आम आदमी की कमर टूट कर रह गई है । जनता को सस्ती कार या एसी नही चाहिए । उसे दरकार है चूल्हा फूंकने के लिए सस्ता सिलेंडर, चाय, चीनी, सब्जी, दूध, दाल और आटा ।
सच यही है कि भाजपा ने महंगाई को भुनाकर सत्ता हथियाई थी। आज वही महंगाई जनता का गला दबा रही है और सत्ता ने अपनी आंखें मूंद ली हैं। सवाल उठता है कि जब जनता की थाली खाली हो रही है, तो नेताओं की थाली कैसे इतनी भरी हुई है? दरअसल आकर्षक नारो के जरिये सत्ता हथियाना राजनीतिक दलों का शौक है । क्योंकि ये बखूबी जानते है कि जनता को मूर्ख कैसे बनाया जा सकता है । पहले कांग्रेस ने जनता से छलावा किया था । आज उसी तर्ज पर बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टिया जनता का खून चूसने में सक्रिय है । महंगाई मिटाना इनका उद्देश्य नही, महज शगल है ।