बिहार में वोटर लिस्ट के S.I.R को चुनौती देने वाली एक याचिका पर S C में हुई सुनवाई

न्यूज़ बॉक्स संवाददाता
नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के मसौदा (ड्राफ्ट वोटर लिस्ट) के प्रकाशन पर कोई रोक नहीं लगाई है लेकिन चुनाव आयोग को कहा गया है कि वो इस प्रक्रिया में आधार कार्ड और मतदाता फोटो पहचान पत्र यानी वोटर आईडी कार्ड (EPIC) को शामिल करे। अदालत विशेष गहन पुनरीक्षण पर बहस की तारीख अब मंगलवार को तय करेगी। बेंच ने चुनाव आयोग से कहा कि यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर नाम काटने के बदले नाम जोड़ने जैसी होनी चाहिए। अदालत ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों से पूछा कि बहस के लिए कौन कितना समय लेगा।सुप्रीम कोर्ट ने पिछली तारीख पर चुनाव आयोग से कहा था कि वो आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को लिए जा रहे दस्तावेजों की सूची में शामिल करने पर विचार करे। चुनाव आयोग ने कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा कि ये तीनों दस्तावेज भरोसेमंद नहीं हैं, क्योंकि इन्हें गलत तरीके से फर्जी बनाया जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत ने आज सुनवाई के दौरान आयोग से कहा कि दुनिया का कोई भी पेपर जाली बनाया जा सकता है।कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपकी लिस्ट वाले पेपर भी निर्णायक नहीं हैं। कोर्ट ने आयोग से पूछा कि क्या वो आधार कार्ड और मतदाता फोटो पहचान पत्र स्वीकार करेगा। आयोग ने कहा कि उसे राशन कार्ड स्वीकार करने में दिक्कत है। आयोग ने कहा कि वोटर आईडी तो फॉर्म पर पहले से प्रिंटेड है और फॉर्म में वोटर को आधार नंबर भरना है। आयोग ने कोर्ट को बताया कि अदालत का ही आदेश है कि आधार कार्ड नागरिकता की पहचान का दस्तावेज नहीं है।संसद परिसर में सुबह विपक्षी सांसदों ने SIR रोकने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया है, जिसमें प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं। विपक्ष लगातार वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ बोल रहा है। बिहार में इस मसले पर महागठबंधन ने बंद का भी आयोजन किया था जिसमें राहुल गांधी भी गए थे। इन दलों का कहना है कि चुनाव आयोग वोटरों का नाम काटने के लिए भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। चुनाव आयोग ने विपक्ष के तमाम नेताओं के ट्वीट और बयान का लगातार खंडन किया है।

S.I.R को लेकर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1-स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) क्या है?;भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने 24 जून को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान शुरू किया. केंद्र के अनुसार इसका उद्देश्य बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLO) द्वारा घर-घर जाकर वेरिफिकेशन के माध्यम से मतदाता सूची को अपडेट और शुद्ध करना था. राज्य में पिछली बार ऐसा अभियान 2003 में चलाया गया था. बिहार में तेजी से हो रहे शहरीकरण, युवाओं के नामांकन और आंतरिक प्रवास को देखते हुए, चुनाव आयोग ने कहा कि राज्य चुनावों से पहले सटीक मतदाता सूची सुनिश्चित करने के लिए यह संशोधन बेहद जरूरी है.
2-SIR संसद में विवाद का विषय क्यों बना:मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस होनी थी, लेकिन SIR अभियान जल्द ही विवाद का एक मुद्दा बन गया. इंडिया अलांयस के सांसदों ने इस मामले पर चर्चा की मांग करते हुए कई नोटिस दिए हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि SIR का इस्तेमाल असली मतदाताओं के नाम सूची से हटाने के लिए किया जा रहा है.
3-सुप्रीम कोर्ट में SIR को लेकर सुनवाई:सुप्रीम कोर्ट एसआईआर को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस प्रक्रिया में कानूनी सुरक्षा उपायों का अभाव है और इससे आबादी के एक बड़े हिस्से के मताधिकार से वंचित होने का खतरा है. प्रमुख याचिकाकर्ता, गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दावा किया कि यह प्रक्रिया मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करती है. अदालत ने वोटर वेरिफिकेशन के लिए आधार और राशन कार्ड को वैध पहचान पत्र के रूप में शामिल न करने पर भी सवाल उठाया .
4- व्यापक भागीदारी या सामूहिक धोखाधड़ी?;चुनाव आयोग के अनुसार एसआईआर में बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने भाग लिया, जो लगभग 92 प्रतिशत मतदान दर है। हालांकि, कई हलफनामों और फील्ड रिपोर्टों में इस आंकड़े को चुनौती दी गई है, जिसमें सुझाव दिया गया है कि मतदाता की सहमति के बिना बीएलओ द्वारा सामूहिक रूप से गणना फॉर्म अपलोड किए गए थे. एडीआर और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मृत लोगों द्वारा भी फॉर्म जमा किए गए दिखाए गए थे, जिससे आंतरिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सिस्टेमैटिक धोखाधड़ी की चिंताएं पैदा होती है.
5-35 लाख मतदाताओं का पता नहीं ;27 जुलाई के अपने ताजा प्रेस नोट में चुनाव आयोग ने 35 लाख मतदाताओं लापता के रूप में चिन्हित किया. चुनाव आयोग के अनुसार कई मतदाता दूसरे राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में चले गए थे, कुछ की मृत्यु हो गई थी, कुछ ने अपने गणना फॉर्म जमा नहीं किए थे, और कुछ तो रजिस्ट्रेशन कराने के लिए ही तैयार नहीं थे.आयोग ने जोर देकर कहा कि उनकी वास्तविक स्थिति की पुष्टि 1 अगस्त तक ERO और AERO द्वारा जांच के बाद ही की जाएगी. महत्वपूर्ण बात यह है कि 1 अगस्त से शुरू होने वाली दावों और आपत्तियों की अवधि के दौरान सभी वास्तविक मतदाताओं को जोड़ा जा सकता है.रजिस्टर मोबाइल नंबरों पर 5.7 करोड़ से ज़्यादा एसएमएस भेजे गए, 29 लाख फॉर्म डिजिटल रूप से जमा किए गए और बीएलओ ने कई घरों का दौरा किया. स्वयंसेवकों ने वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों और कमजोर समूहों को फॉर्म प्राप्त करने और अपील दायर करने में भी सहायता की, साथ ही निवारण तंत्र के लिए प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया.
6-दावे और आपत्तियां 1 अगस्त से शुरू होंगे:चुनाव आयोग ने कहा है कि बिना ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ और उचित सूचना के किसी भी नाम को हटाया नहीं जाएगा. मसौदा सूची 1 अगस्त को प्रकाशित की जाएगी और मतदाता या राजनीतिक दल 1 सितंबर तक दावे या आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं. जंरूरत पड़ने पर जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अपील की जा सकती है.
7-सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से परामर्श किया गया:सुप्रीम कोर्ट को दिए गए एक हलफनामे में चुनाव आयोग ने अयोग्य मतदाताओं को हटाने, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एसआईआर को जरूरी बताया।.अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए, आयोग ने जोर देकर कहा कि वह अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन कर रहा है.चुनाव आयोग ने यह भी दावा किया कि सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से परामर्श किया गया था और 1.5 लाख से ज़्यादा बूथ लेवल एजेंट तैनात किए गए थे. हालांकि, एडीआर ने इस बात का खंडन किया कि किसी भी राजनीतिक दल ने पूरी तरह से बदलाव की मांग नहीं की थी.
8-बिहार से राष्ट्र तक SIR का खतरा :24 जून को जारी अपने निर्देश में चुनाव आयोग ने घोषणा की कि एसआईआर अंततः पूरे देश में आयोजित किया जाएगा. भारत में 96.88 करोड़ मतदाता हैं, इसलिए एक छोटी सी भी त्रुटि दर लाखों लोगों को प्रभावित कर सकती है. एएनआई के मुताबिक बिहार के निष्कर्षों ने उन व्यवस्थागत मुद्दों को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं जो अन्य राज्यों में भी उभर सकते हैं, खासकर जहां समान प्रवासन पैटर्न मौजूद हैं. मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित की जाएगी, और 1 सितंबर तक आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं.
9-उचित प्रक्रिया और ट्रासपेरेंसी:आलोचकों का कहना है कि एसआईआर इस तरह से आयोजित की जा रही है जो प्रक्रियागत निष्पक्षता का उल्लंघन करती है. एडीआर द्वारा अदालत में दिए गए हलफनामे में आरोप लगाया गया है कि बीएलओ द्वारा बिना फिजिकल वेरिफिकेशन के फॉर्म जमा किए गए थे और निवारण के लिए कोई उचित माध्यम नहीं थे.चुनाव आयोग ने तर्क दिया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 24 के तहत अपील की जा सकती है, लेकिन शिकायतकर्ताओं का कहना है कि जागरूकता और पहुंच सीमित है. परस्पर विरोधी आख्यानों और उच्च दांव के साथ, एसआईआर अब एक नौकरशाही अभ्यास से राष्ट्रीय विवाद में बदल गया है.